यारो हुदूद-ए-ग़म से गुज़रने लगा हूँ मैं
मुझ को समेट लो कि बिखरने लगा हूँ मैं
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तुम्हारा चेहरा तुम्हें हू-ब-हू दिखाऊँगा
मैं एक बूँद समुंदर हुआ तो कैसे हुआ
मुझ में है यही ऐब कि औरों की तरह मैं
ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है
न जाने कैसा समुंदर है इश्क़ का जिस में
उर्दू
स्कूल-टीचर
कहीं सूरज कहीं ज़र्रा चमकता है
हम से तहज़ीब का दामन नहीं छोड़ा जाता
कौन आता है अयादत के लिए देखें 'फ़राग़'
सुना है अम्न-परस्तों का वो इलाक़ा है