सुना है अम्न-परस्तों का वो इलाक़ा है
वहीं शिकार कबूतर हुआ तो कैसे हुआ
Rahat Indori
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(915) Peoples Rate This
जो भी अंजाम हो आग़ाज़ किए देते हैं
यारो हुदूद-ए-ग़म से गुज़रने लगा हूँ मैं
न जाने कैसा समुंदर है इश्क़ का जिस में
लबों के सामने ख़ाली गिलास रखते हैं
दिन में भी हसरत-ए-महताब लिए फिरते हैं
गुड़िया की शादी
न चाँद ने किया रौशन मुझे न सूरज ने
कभी हरीफ़ कभी हम-नवा हमीं ठहरे
देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा
ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है
कभी न सोचा था मैं ने उड़ान भरते हुए