न चाँद ने किया रौशन मुझे न सूरज ने
तो मैं जहाँ में मुनव्वर हुआ तो कैसे हुआ
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कमी ज़रा सी अगर फ़ासले में आ जाए
सुना है अम्न-परस्तों का वो इलाक़ा है
मुझ में है यही ऐब कि औरों की तरह मैं
जो भी अंजाम हो आग़ाज़ किए देते हैं
मिरी मैली हथेली पर तो बचपन से
हम से तहज़ीब का दामन नहीं छोड़ा जाता
देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा
ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है
नवाह-ए-जाँ में किसी के उतरना चाहा था
कम्पयूटर
कहीं सूरज कहीं ज़र्रा चमकता है
यारो हुदूद-ए-ग़म से गुज़रने लगा हूँ मैं