दिमाग़ अहल-ए-मोहब्बत का साथ देता नहीं
उसे कहो कि वो दिल के कहे में आ जाए
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देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा
न जाने कैसा समुंदर है इश्क़ का जिस में
गुड़िया की शादी
चिलड्रेंस-डे
जो भी अंजाम हो आग़ाज़ किए देते हैं
ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है
मेरी दादी
कभी हरीफ़ कभी हम-नवा हमीं ठहरे
उसी तरफ़ है ज़माना भी आज महव-ए-सफ़र
नवाह-ए-जाँ में किसी के उतरना चाहा था
कहीं सूरज कहीं ज़र्रा चमकता है
कौन आता है अयादत के लिए देखें 'फ़राग़'