इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा 'फ़राग़'
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा
Javed Akhtar
Allama Iqbal
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Gulzar
Mir Taqi Mir
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किसी ने राह का पत्थर हमीं को ठहराया
जिस दिन से कोई ख़्वाहिश-ए-दुनिया नहीं रखता
कहीं सूरज कहीं ज़र्रा चमकता है
खुली न मुझ पे भी दीवानगी मिरी बरसों
हम से तहज़ीब का दामन नहीं छोड़ा जाता
ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है
एक रहें हम
कम्पयूटर
मिरी मैली हथेली पर तो बचपन से
दिमाग़ अहल-ए-मोहब्बत का साथ देता नहीं
चिलड्रेंस-डे
न चाँद ने किया रौशन मुझे न सूरज ने