जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है

जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है

दुई छोड़ बंदे ख़ुदा एक ही है

ये गुल खिल रहा है वो मुरझा रहा है

असर दो तरह के हवा एक ही है

हैं अपनी ही निय्यत के फल तल्ख़-ओ-शीरीं

वगर्ना मज़ा दर्द का एक ही है

भरे रंग जितने बदलता ज़माना

मगर इश्क़ का माजरा एक ही है

सभी शिकवे मिटते हैं चश्म-ए-करम से

मरज़ हों हज़ारों दवा एक ही है

दो-रंगी-ए-दुनिया से क्या काम हम को

कि फ़िरदौस-ए-दिल की फ़ज़ा एक ही है

बनाते हैं बे-ख़ुद सभी हुस्न वाले

ठिकाने अलग रास्ता एक ही है

कोई समझे नग़्मा कोई समझे नाला

मिरे साज़-ए-दिल की सदा एक ही है

वो दार-ओ-रसन हों कि हों ज़हर-ओ-ख़ंजर

बहाने हज़ारों क़ज़ा एक ही है

मोहब्बत करे और हो बे-ग़रज़ भी

लो फिर 'आरज़ू' आप का एक ही है

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