'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी
पी लो और दहशत-ए-गुनाह गई
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जोश-ए-जुनूँ में वो तिरे वहशी का चीख़ना
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
कुछ तो मिल जाए लब-ए-शीरीं से
जितने हुस्न-आबाद में पहोंचे होश-ओ-ख़िरद खो कर पहोंचे
दोस्त ने दिल को तोड़ के नक़्श-ए-वफ़ा मिटा दिया
निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़
कम जो ठहरे जफ़ा से मेरी वफ़ा
गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
हर टूटे हुए दिल की ढारस है तिरा वअ'दा
मिरे जोश-ए-ग़म की है अजब कहानी
कर पहले दिल पे क़ाबू जामे की फिर ख़बर ले