सय्यदा अरशिया हक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सय्यदा अरशिया हक़

सय्यदा अरशिया हक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सय्यदा अरशिया हक़
नामसय्यदा अरशिया हक़
अंग्रेज़ी नामSayyada Arshia Haq
जन्म की तारीख1990

तुम ये कहते हो इक सवाल हो तुम

सहेली की सहेली 'अर्शिया-हक़'

मस्जिद को मत जाया कर

इस धरती से उस अम्बर को लौट गया

दिल से हो कर दिल तलक जाया करो

यही दुआ है वो मेरी दुआ नहीं सुनता

तुम्हें लगता है जो वैसी नहीं हूँ

तुम्हारे ख़त जला कर के तुम्हें यकसर भुला दूँगी

तुम्हारा रोज़ जो मैं सर्फ़ करती रहती हूँ

तुम भी आख़िर हो मर्द क्या जानो

तो क्या हुआ जो जन्मी थी परदेस में कभी

सब यहाँ 'जौन' के दिवाने हैं

मैं ख़ुद पे ज़ब्त खोती जा रही हूँ

ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को

जिस्म को पढ़ते रहे वो रूह तक आए नहीं

हिजाब करने की बंदिश मुझे गवारा नहीं

चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना

बला की हुस्न-वर है 'अर्शिया-हक़'

औरत हो तुम तो तुम पे मुनासिब है चुप रहो

'अर्शिया-हक़' के परस्तारों में हो

अपनी सूरत-ए-ज़र्द छुपाती फिरती हूँ

यूँ बातें तो बहुत सारी करोगे

तेरे लिए मैं बाज़ी लगाऊंगी जान की

बताओ तो तुम्हें कैसी लगी है

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