दिल से हो कर दिल तलक जाया करो
बीच के रस्ते न अपनाया करो
मुझ को बातें कम समझ आती हैं तुम
कुछ अमल कर के ही बतलाया करो
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तुम ये कहते हो इक सवाल हो तुम
तुम्हारे ख़त जला कर के तुम्हें यकसर भुला दूँगी
तुम भी आख़िर हो मर्द क्या जानो
तुम्हारा रोज़ जो मैं सर्फ़ करती रहती हूँ
बला की हुस्न-वर है 'अर्शिया-हक़'
बताओ तो तुम्हें कैसी लगी है
यूँ बातें तो बहुत सारी करोगे
इस धरती से उस अम्बर को लौट गया
मैं ख़ुद पे ज़ब्त खोती जा रही हूँ
ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को
'अर्शिया-हक़' के परस्तारों में हो
चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना