ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को
मिरी हालत बिगड़ती जा रही है
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यही दुआ है वो मेरी दुआ नहीं सुनता
सहेली की सहेली 'अर्शिया-हक़'
इस धरती से उस अम्बर को लौट गया
अपनी सूरत-ए-ज़र्द छुपाती फिरती हूँ
दिल से हो कर दिल तलक जाया करो
मैं ख़ुद पे ज़ब्त खोती जा रही हूँ
जिस्म को पढ़ते रहे वो रूह तक आए नहीं
बला की हुस्न-वर है 'अर्शिया-हक़'
चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना
तो क्या हुआ जो जन्मी थी परदेस में कभी
तुम्हारे ख़त जला कर के तुम्हें यकसर भुला दूँगी
तेरे लिए मैं बाज़ी लगाऊंगी जान की