तो क्या हुआ जो जन्मी थी परदेस में कभी
बेटी है 'अर्शिया' भी तो हिन्दोस्तान की
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तुम्हें लगता है जो वैसी नहीं हूँ
तुम ये कहते हो इक सवाल हो तुम
इस धरती से उस अम्बर को लौट गया
बला की हुस्न-वर है 'अर्शिया-हक़'
दिल से हो कर दिल तलक जाया करो
बताओ तो तुम्हें कैसी लगी है
चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना
तेरे लिए मैं बाज़ी लगाऊंगी जान की
ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को
अपनी सूरत-ए-ज़र्द छुपाती फिरती हूँ
औरत हो तुम तो तुम पे मुनासिब है चुप रहो
तुम भी आख़िर हो मर्द क्या जानो