यही दुआ है वो मेरी दुआ नहीं सुनता
ख़ुदा जो होता अगर क्या ख़ुदा नहीं सुनता
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ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को
'अर्शिया-हक़' के परस्तारों में हो
बताओ तो तुम्हें कैसी लगी है
चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना
तुम ये कहते हो इक सवाल हो तुम
यूँ बातें तो बहुत सारी करोगे
तुम्हारा रोज़ जो मैं सर्फ़ करती रहती हूँ
तो क्या हुआ जो जन्मी थी परदेस में कभी
सब यहाँ 'जौन' के दिवाने हैं
तुम्हें लगता है जो वैसी नहीं हूँ
औरत हो तुम तो तुम पे मुनासिब है चुप रहो