तुम्हारे ख़त जला कर के तुम्हें यकसर भुला दूँगी
तुम्हारे जुर्म की तुम को मैं इस दर्जा सज़ा दूँगी
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ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को
सब यहाँ 'जौन' के दिवाने हैं
यूँ बातें तो बहुत सारी करोगे
चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना
जिस्म को पढ़ते रहे वो रूह तक आए नहीं
तुम्हें लगता है जो वैसी नहीं हूँ
तेरे लिए मैं बाज़ी लगाऊंगी जान की
औरत हो तुम तो तुम पे मुनासिब है चुप रहो
सहेली की सहेली 'अर्शिया-हक़'
अपनी सूरत-ए-ज़र्द छुपाती फिरती हूँ
तुम्हारा रोज़ जो मैं सर्फ़ करती रहती हूँ