हिजाब करने की बंदिश मुझे गवारा नहीं
कि मेरा जिस्म कोई माल-ए-ज़र तुम्हारा नहीं
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सब यहाँ 'जौन' के दिवाने हैं
बताओ तो तुम्हें कैसी लगी है
ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को
दिल से हो कर दिल तलक जाया करो
तुम्हें लगता है जो वैसी नहीं हूँ
यही दुआ है वो मेरी दुआ नहीं सुनता
जिस्म को पढ़ते रहे वो रूह तक आए नहीं
सहेली की सहेली 'अर्शिया-हक़'
बला की हुस्न-वर है 'अर्शिया-हक़'
तेरे लिए मैं बाज़ी लगाऊंगी जान की
अपनी सूरत-ए-ज़र्द छुपाती फिरती हूँ