ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें
कहीं सर पटकते दीवाने कहीं पर झुलसते परवाने
ये दास्तान-ए-दिल है क्या हो अदा ज़बाँ से
मासूम नज़र का भोला-पन ललचा के लुभाना क्या जाने
मिसाल-ए-शम्अ अपनी आग में क्या आप जल जाऊँ
किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया
हम को इतना भी रिहाई की ख़ुशी में नहीं होश
क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता
हर टूटे हुए दिल की ढारस है तिरा वअ'दा
हद से टकराती है जो शय वो पलटती है ज़रूर
गोरे गोरे चाँद से मुँह पर काली काली आँखें हैं