दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
बस इसी बात से दुश्मन मुझे पहचान गए
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इस ए'तिबार से बे-इंतिहा ज़रूरी है
पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिल्कुल चाहिए
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
पहले हुआ जो करते थे हम वो नहीं रहे
ख़ुदा को आज़माना चाहिए था
औरों से पूछिए तो हक़ीक़त पता चले
ये दुनिया-दारी और इरफ़ान का दावा 'शुजा-ख़ावर'
यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं
छोड़िए बाक़ी भी क्या रक्खा है उन के क़हर में
विज्दान में वो आया इल्हाम हुआ मुझ को
जैसा मंज़र मिले गवारा कर
ख़ुदा ने चाहा तो सब इंतिज़ाम कर देंगे