दिल की बातें दूसरों से मत कहो लुट जाओगे
आज कल इज़हार के धंधे में है घाटा बहुत
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ख़ुदा ने चाहा तो सब इंतिज़ाम कर देंगे
तकल्लुफ़ छोड़ कर मेरे बराबर बैठ जाएगा
उस के आने पे भी नहीं आई
औरों से पूछिए तो हक़ीक़त पता चले
रुख़ हवा का ये कि जैसे उस को आसानी पड़े
ख़ुदा को आज़माना चाहिए था
दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत
जिन को क़ुदरत है तख़य्युल पर उन्हें दिखता नहीं
'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना
हालत उसे दिल की न दिखाई न ज़बाँ की
हालात न बदलें तो इसी बात पे रोना
इसी पर ख़ुश हैं कि इक दूसरे के साथ रहते हैं