इसी पर ख़ुश हैं कि इक दूसरे के साथ रहते हैं
अभी तन्हाई का मतलब नहीं समझे हैं घर वाले
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जैसा मंज़र मिले गवारा कर
घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
तंहाई का इक और मज़ा लूट रहा हूँ
हालात न बदलें तो इसी बात पे रोना
दिलों में फ़र्क़ है तो गुफ़्तुगू से कुछ नहीं होगा
इस ए'तिबार से बे-इंतिहा ज़रूरी है
दो चार नहीं सैंकड़ों शेर उस पे कहे हैं
उस के आने पे भी नहीं आई
अब तेरे लिए हैं न ज़माने के लिए हैं
दर्द जाएगा तो कुछ कुछ जाएगा पर देखना
दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत