जिन को क़ुदरत है तख़य्युल पर उन्हें दिखता नहीं
जिन की आँखें ठीक हैं उन को तख़य्युल चाहिए
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पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिल्कुल चाहिए
'शुजा' मौत से पहले ज़रूर जी लेना
जो ज़िंदा हो उसे तो मार देते हैं जहाँ वाले
सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार
उस के बयान से हुए हर दिल अज़ीज़ हम
लोगों ने हम को शहर का क़ाज़ी बना दिया
वस्ल हुआ पर दिल में तमन्ना
गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा
जो तुम से पहले आए थे उन की कारिस्तानी देखो
उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या
शिद्दत-ए-इंतिज़ार काम आई