जो ज़िंदा हो उसे तो मार देते हैं जहाँ वाले
जो मरना चाहता हो उस को ज़िंदा छोड़ देते हैं
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दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत
चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा
उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है
समझते क्या हैं इन दो चार रंगों को उधर वाले
शिद्दत-ए-इंतिज़ार काम आई
सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
उस के बयान से हुए हर दिल अज़ीज़ हम
बरपा तिरे विसाल का तूफ़ान हो चुका
छोड़िए बाक़ी भी क्या रक्खा है उन के क़हर में
दश्त को जा तो रहे हो सोच लो कैसा लगेगा
ख़ुदा को आज़माना चाहिए था
वस्ल हुआ पर दिल में तमन्ना