करम है मुझ पे किसी और के जलाने को
वो शख़्स मुझ पे कोई मेहरबान थोड़ी है
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दिल की बातें दूसरों से मत कहो लुट जाओगे
क़लम में ज़ोर जितना है जुदाई की बदौलत है
सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
तभी आएगी लबों पर मिरे दिल की बात खुल के
जैसा मंज़र मिले गवारा कर
दश्त को जा तो रहे हो सोच लो कैसा लगेगा
तंगी-ए-हैअत से टकराता हुआ जोश-ए-मवाद
चेहरे पे थोड़ी रक्खी है
चारागरी की बात किसी और से करो
मैं ने सिर्फ़ अपने नशेमन को सजाया साल भर
दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा