क़लम में ज़ोर जितना है जुदाई की बदौलत है
मिलन के ब'अद लिखने वाले लिखना छोड़ देते हैं
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यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं
ख़ुदा ने चाहा तो सब इंतिज़ाम कर देंगे
'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना
'शुजा' मौत से पहले ज़रूर जी लेना
लोगों ने हम को शहर का क़ाज़ी बना दिया
घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
दश्त को जा तो रहे हो सोच लो कैसा लगेगा
इसी पर ख़ुश हैं कि इक दूसरे के साथ रहते हैं
दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
मिरे हालात को बस यूँ समझ लो
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
अब तेरे लिए हैं न ज़माने के लिए हैं