रिंद खड़े हैं मिम्बर मिम्बर
और वाइज़ ने पी रक्खी है
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उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या
चारागरी की बात किसी और से करो
दिलों में फ़र्क़ है तो गुफ़्तुगू से कुछ नहीं होगा
उधर तो दार पर रक्खा हुआ है
दश्त को जा तो रहे हो सोच लो कैसा लगेगा
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
ज़िंदगी भर ज़िंदा रहने की यही तरकीब है
रखते हैं अपने ख़्वाबों को अब तक अज़ीज़ हम
जिन को क़ुदरत है तख़य्युल पर उन्हें दिखता नहीं
उस के आने पे भी नहीं आई
औरों से पूछिए तो हक़ीक़त पता चले