कुछ नहीं बोला तो मर जाएगा अंदर से 'शुजाअ'
और अगर बोला तो फिर बाहर से मारा जाएगा
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इस तरह पहुँचेगा कैसे पाया-ए-तकमील को
दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
सभी ज़िंदगी पे फ़रेफ़्ता कोई मौत पर नहीं शेफ़्ता
'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना
सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या
पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिल्कुल चाहिए
दोस्त का घर और दुश्मन का पता मालूम है
करम है मुझ पे किसी और के जलाने को
छोड़िए बाक़ी भी क्या रक्खा है उन के क़हर में
जो ज़िंदा हो उसे तो मार देते हैं जहाँ वाले
ख़ुद फ़रिश्ते तो नहीं हैं जो मुझे ले जा रहे हैं