तंगी-ए-हैअत से टकराता हुआ जोश-ए-मवाद
शायरी का लुत्फ़ आ जाता है छोटी बहर में
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इस ए'तिबार से बे-इंतिहा ज़रूरी है
जो तुम से पहले आए थे उन की कारिस्तानी देखो
रिंद खड़े हैं मिम्बर मिम्बर
रुख़ हवा का ये कि जैसे उस को आसानी पड़े
निकाल ज़ात से बाहर निकाल तन्हाई
जो क़िस्सा था ख़ुद से छुपाया हुआ
उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या
हम सूफ़ियों का दोनों तरफ़ से ज़ियाँ हुआ
सातों आलम सर करने के बा'द इक दिन की छुट्टी ले कर
चारागरी की बात किसी और से करो
वस्ल हुआ पर दिल में तमन्ना
सभी ज़िंदगी पे फ़रेफ़्ता कोई मौत पर नहीं शेफ़्ता