शिद्दत-ए-इंतिज़ार काम आई
उन की तहरीर मेरे नाम आई
दिन में हम ने भुला दिया था तुझे
रात लेने को इंतिक़ाम आई
सुब्ह मरकज़ बनी उमीदों का
शाम मायूसियों के काम आई
देखते देखते तिरा चेहरा
ख़ुद-ब-ख़ुद क़ुदरत-कलाम आई
Mir Taqi Mir
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हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार
औरों से पूछिए तो हक़ीक़त पता चले
यहाँ वहाँ की बुलंदी में शान थोड़ी है
ख़ुदा को आज़माना चाहिए था
कुछ नहीं बोला तो मर जाएगा अंदर से 'शुजाअ'
सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
उस के आने पे भी नहीं आई
जिन को क़ुदरत है तख़य्युल पर उन्हें दिखता नहीं
छोड़िए बाक़ी भी क्या रक्खा है उन के क़हर में
दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत