सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
और इस के साथ गर्मी-ए-जज़्बात भी गई
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उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है
क़लम में ज़ोर जितना है जुदाई की बदौलत है
चेहरे पे थोड़ी रक्खी है
औरों से पूछिए तो हक़ीक़त पता चले
सभी ज़िंदगी पे फ़रेफ़्ता कोई मौत पर नहीं शेफ़्ता
तभी आएगी लबों पर मिरे दिल की बात खुल के
हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार
गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा
अब तेरे लिए हैं न ज़माने के लिए हैं
करम है मुझ पे किसी और के जलाने को
हम सूफ़ियों का दोनों तरफ़ से ज़ियाँ हुआ
दो चार नहीं सैंकड़ों शेर उस पे कहे हैं