ये दुनिया-दारी और इरफ़ान का दावा 'शुजा-ख़ावर'
मियाँ इरफ़ान हो जाए तो दुनिया छोड़ देते हैं
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रुख़ हवा का ये कि जैसे उस को आसानी पड़े
तंगी-ए-हैअत से टकराता हुआ जोश-ए-मवाद
इस ए'तिबार से बे-इंतिहा ज़रूरी है
इसी पर ख़ुश हैं कि इक दूसरे के साथ रहते हैं
दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत
जैसा मंज़र मिले गवारा कर
करम है मुझ पे किसी और के जलाने को
दिलों में फ़र्क़ है तो गुफ़्तुगू से कुछ नहीं होगा
हालात न बदलें तो इसी बात पे रोना
चेहरे पे थोड़ी रक्खी है
या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों
तंहाई का इक और मज़ा लूट रहा हूँ