इक लम्हा-ए-फ़िराक़ पे वारा गया मुझे
कैसी हसीन शाम में मारा गया मुझे
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(696) Peoples Rate This
सफीर-ए-इश्क़ हमें अब तो हम सफ़र कर लो
वो एक हाथ बढ़ाएगा तुझ को पा लेगा
वक़्त की ताक़ पे दोनों की सजाई हुई रात
दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं
इस से पहले कि ये आज़ार गवारा कर लें
कुछ इस लिए भी तिरी आरज़ू नहीं है मुझे
फ़र्ज़-ए-सुपुर्दगी में तक़ाज़े नहीं हुए
हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
जल्द आएँ जिन्हें सीने से लगाना है मुझे
बदन में आग है रोग़न मिरे ख़याल में है
मैं तो शब-ए-फ़िराक़ था तुम एक उम्र थी