फ़िराक़ Poetry (page 9)

वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे

फ़ारूक़ बख़्शी

नवाह-ए-जाँ में किसी के उतरना चाहा था

फ़राग़ रोहवी

कूचा-ए-जानाँ में जा निकले जो ग़िल्माँ भूल कर

फ़ानी बदायुनी

हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

फिर ज़बान-ए-इश्क़ चश्म-ए-ख़ूँ-फिशाँ होने लगी

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

किसे ढूँडता हूँ मैं अपने क़़ुर्ब-ओ-जवार में

फ़ैज़ी

कोई नाम है न कोई निशाँ मुझे क्या हुआ

फ़ैज़ी

वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ज़िंदाँ की एक सुब्ह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ज़िंदाँ की एक शाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

याद

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

निसार मैं तेरी गलियों के

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मर्ग-ए-सोज़-ए-मोहब्बत

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जो मेरा तुम्हारा रिश्ता है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

याद-ए-ग़ज़ाल-चश्माँ ज़िक्र-ए-समन-अज़ाराँ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शरह-ए-फ़िराक़ मदह-ए-लब-ए-मुश्कबू करें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शफ़क़ की राख में जल बुझ गया सितारा-ए-शाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मेघ दूत

फ़हमीदा रियाज़

यहीं था बैठा हुआ दरमियाँ कहाँ गया मैं

एजाज़ गुल

सदा-ए-अहद-ए-वफ़ा को ज़वाल क्यूँ आया

एजाज़ अासिफ़

परस्तिश-ए-ग़म का शुक्रिया क्या तुझे आगही नहीं

एहसान दानिश

मिरे मिटाने की तदबीर थी हिजाब न था

एहसान दानिश

बना रहा था कोई आब ओ ख़ाक से कुछ और

दिलावर अली आज़र

ज़रा निगाह उठाओ कि ग़म की रात कटे

द्वारका दास शोला

इक ख़्वाब का ख़याल है दुनिया कहें जिसे

दत्तात्रिया कैफ़ी

जब से किसी से दर्द का रिश्ता नहीं रहा

दरवेश भारती

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