फ़िराक़ Poetry (page 10)

दुआ हमारी कभी बा-असर नहीं होती

दानिश फ़राही

तेरे फ़िराक़ ने की ज़िंदगी अता मुझ को

दानिश अलीगढ़ी

अगर मैं उन की निगाहों से गिर गया होता

दानिश अलीगढ़ी

चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़

दाग़ देहलवी

ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है

दाग़ देहलवी

सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना

दाग़ देहलवी

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा

दाग़ देहलवी

दिल मुब्तला-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार ही रहा

दाग़ देहलवी

फ़ज़ा में कैफ़-फ़शाँ फिर सहाब है साक़ी

चरख़ चिन्योटी

दौर-ए-निगाह-ए-साक़ी-ए-मस्ताना एक है

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

सोज़-ए-फ़िराक़ दिल में छुपाए हुए हैं हम

बबल्स होरा सबा

सुलगती रेत में इक चेहरा आब सा चमका

बृजेश अम्बर

सहर हुई तो ख़यालों ने मुझ को घेर लिया

बिस्मिल साबरी

ये कह के देती जाती है तस्कीं शब-ए-फ़िराक़

बिस्मिल अज़ीमाबादी

ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं

बिस्मिल अज़ीमाबादी

मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो

बिस्मिल अज़ीमाबादी

रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी

भारतेंदु हरिश्चंद्र

अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा

बेकल उत्साही

इक बे-वफ़ा को प्यार किया हाए क्या किया

बहज़ाद लखनवी

दिल लिया जान ली नहीं जाती

बेदम शाह वारसी

कोई मेयार-ए-मोहब्बत न रहा मेरे बा'द

बासित भोपाली

छुप सका दम भर न राज़-ए-दिल फ़िराक़-ए-यार में

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

मतलब न काबे से न इरादा कनिश्त का

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

चाँद सा चेहरा जो उस का आश्कारा हो गया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

क्यूँ कर न ऐसे जीने से या रब मलूल हूँ

बाक़र आगाह वेलोरी

दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह

बहराम जी

अब कौन सी मता-ए-सफ़र दिल के पास है

अज़ीज़ तमन्नाई

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