शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2553) Peoples Rate This
मेरे मिलने वाले
याद-ए-ग़ज़ाल-चश्माँ ज़िक्र-ए-समन-अज़ाराँ
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलम
अब अपना इख़्तियार है चाहे जहाँ चलें
ज़ेर-ए-लब है अभी तबस्सुम-ए-दोस्त
अफ़्रीक़ा कम-बैक
शफ़क़ की राख में जल बुझ गया सितारा-ए-शाम
अंजाम
फ़रेब-ए-आरज़ू की सहल-अँगारी नहीं जाती
याद का फिर कोई दरवाज़ा खुला आख़िर-ए-शब
मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है
खिले जो एक दरीचे में आज हुस्न के फूल