तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे
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लेनिन-ग्राड का गोरिस्तान
मैं तेरे सपने देखूँ
दो इश्क़
तुम्हारे हुस्न के नाम
क़ैद-ए-तन्हाई
हम तो मजबूर थे इस दिल से
हम खस्ता-तनों से मुहतसिबो क्या माल-मनाल का पूछते हो
लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा
न पूछ जब से तिरा इंतिज़ार कितना है
रात ढलने लगी है सीनों में
जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए
मेरे मिलने वाले