एक मौसम की कसक है दिल में दफ़्न
मीठा मीठा दर्द सा है मुस्तक़िल
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क्या बताऊँ कि कितनी शिद्दत से
दिन में आने लगे हैं ख़्वाब मुझे
'राग़िब' वो मेरी फ़िक्र में ख़ुद को भी भूल जाएँ
इक बड़ी जंग लड़ रहा हूँ
तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना
वो कहते हैं कि आँखों में मिरी तस्वीर किस की है
ये वस्ल की रुत है कि जुदाई का है मौसम
जी चाहता है जीना जज़्बात के मुताबिक़
इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो
वो कहते हैं कि 'राग़िब' तुम नहीं रखते ख़याल अपना