दूर तक कोई न आया उन रुतों को छोड़ने
बादलों को जो धनक की चूड़ियाँ पहना गईं
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नज़्म
हम कहाँ आ गए
इधर उधर से मुक़ाबिल को यूँ न घाइल कर
इक तेरे सिवा
नया जन्म
है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम
नज़र न आए तो सौ वहम दिल में आते हैं
रद्द-ए-अमल
हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे
मैं ने कब बर्क़-ए-तपाँ मौज-ए-बला माँगी थी
ज़िंदगी ऐसे घरों से तो खंडर अच्छे थे
क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए