साइबाँ Poetry (page 3)

भटक रही है 'अता' ख़ल्क़-ए-बे-अमाँ फिर से

अताउल हक़ क़ासमी

भटक रही है 'अता' ख़ल्क़-ए-बे-अमाँ फिर से

अताउल हक़ क़ासमी

रूठ कर निकला तो वो उस सम्त आया भी नहीं

असलम कोलसरी

रूठ कर निकला तो वो इस सम्त आया भी नहीं

असलम कोलसरी

थीं ज़मीनें गुम-शुदा और आसमाँ मिलता न था

अशरफ़ शाद

चाँद तारों से भरा ये आसमाँ दे जाऊँगा

अशरफ़ शाद

इस सफ़र में नीम-जाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं

अशअर नजमी

बड़े नादान थे हम रेत को आब-ए-रवाँ समझे

असअ'द बदायुनी

हर एक लम्हा-ए-ग़म बहर-ए-बे-कराँ की तरह

अरशद कमाल

उन से तन्हाई में बात होती रही

अनवर शऊर

सदाक़तों को ये ज़िद है ज़बाँ तलाश करूँ

अंजुम ख़लीक़

बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो अगरचे मेहरबाँ है वो

अनीस अंसारी

ग़ुबार-ए-दश्त-ए-तलब में हैं रफ़्तगाँ क्या क्या

अमजद इस्लाम अमजद

हमारे चेहरों में पिन्हाँ हैं ज़ाविए क्या क्या

आमिर नज़र

अयाँ दोनों से तक्मील-ए-जहाँ है

अंबरीन हसीब अंबर

चले थे भर के रेत जब सफ़र की जिस्म-ओ-जाँ में हम

अलीम अफ़सर

हरीफ़-ए-दास्ताँ करना पड़ा है

अख़्तर होशियारपुरी

मिरी रूह में जो उतर सकें वो मोहब्बतें मुझे चाहिएँ

ऐतबार साजिद

है वाहिमों का तमाशा यहाँ वहाँ देखो

अहमद शनास

वो मर गया सदा-ए-नौहा-गर में कितनी देर है

अहमद शहरयार

हर आइने में तिरा ही धुआँ दिखाई दिया

अफ़ज़ल गौहर राव

देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं

अफ़ज़ल गौहर राव

सुलगती रेत पे तहरीर जो कहानी है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

ग़मों की धूप में मिलते हैं साएबाँ बन कर

अफ़ज़ल इलाहाबादी

हिज्र-ज़ाद

आफ़ताब इक़बाल शमीम

डराएगी भला क्या तेरी गर्दिश आसमाँ मुझ को

अदील ज़ैदी

मुझे रंग-ए-ख़्वाब से ज़िंदगी का यक़ीं मिला

अदा जाफ़री

ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई

अदा जाफ़री

आलम ही और था जो शनासाइयों में था

अदा जाफ़री

फ़सील-ए-जिस्म गिरा दे मकान-ए-जाँ से निकल

अभिषेक शुक्ला

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