हम बहर हाल दिल ओ जाँ से तुम्हारे होते
तुम भी इक-आध घड़ी काश हमारे होते
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इक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा
क्यूँ मिरे लब पे वफ़ाओं का सवाल आ जाए
शोर सा एक हर इक सम्त बपा लगता है
वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सू
क्यूँ परखते हो सवालों से जवाबों को 'अदीम'
रख़्त-ए-सफ़र यूँही तो न बेकार ले चलो
बस कोई ऐसी कमी सारे सफ़र में रह गई
उसी एक फ़र्द के वास्ते मिरे दिल में दर्द है किस लिए
ग़म है वहीं प ग़म का सहारा गुज़र गया
कटी हुई है ज़मीं कोह से समुंदर तक
किसी झूटी वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता
कुछ हिज्र के मौसम ने सताया नहीं इतना