रात भर शम्अ जलाता हूँ बुझाता हूँ 'सिराज'
बैठे बैठे यही शग़्ल-ए-शब तन्हाई है
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अच्छा क़िसास लेना फिर आह-ए-आतिशीं से
ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ
यौम-ए-आज़ादी
जान सी शय की मुझे इश्क़ में कुछ क़द्र नहीं
आप के पाँव के नीचे दिल है
क़फ़स से दूर सही मौसम-ए-बहार तो है
क़िस्मत से लड़ती हैं निगाहें
क्यूँ ध्यान बटाती है मिरा गर्दिश-ए-दुनिया
इश्क़ का बंदा भी हूँ काफ़िर भी हूँ मोमिन भी हूँ
ये इंक़लाब भी ऐ दौर-ए-आसमाँ हो जाए
वो भीड़ है कि ढूँढना तेरा तो दरकिनार
ज़रा देखो ये सरकश ज़र्रा-ए-ख़ाक