ज़रा देखो ये सरकश ज़र्रा-ए-ख़ाक
फ़लक का चाँद बनता जा रहा है
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(543) Peoples Rate This
काफ़िरी में भी जो चाहत होगी
हर नफ़्स उतनी ही लौ देगा 'सिराज'
क़िस्मत से लड़ती हैं निगाहें
मिला-दिला सही इक ख़ुश्क हार बाक़ी है
अब इतनी अर्ज़ां नहीं बहारें वो आलम-ए-रंग-ओ-बू कहाँ है
वो भीड़ है कि ढूँढना तेरा तो दरकिनार
रात भर शम्अ' जलाता हूँ बुझाता हूँ 'सिराज'
ये इंक़लाब भी ऐ दौर-ए-आसमाँ हो जाए
रात भर शम्अ जलाता हूँ बुझाता हूँ 'सिराज'
ख़बर रिहाई की मिल चुकी है चराग़ फूलों के जल रहे हैं
हर अश्क-ए-सुर्ख़ है दामान-ए-शब में आग का फूल
नज़्र-ए-ग़म शायद हर अश्क-ए-ख़ूँ-चकाँ करना पड़े