क़फ़स से दूर सही मौसम-ए-बहार तो है
असीरो आओ ज़रा ज़िक्र-ए-आशियाँ हो जाए
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मिला-दिला सही इक ख़ुश्क हार बाक़ी है
अभी रक्खा रहने दो ताक़ पर यूँही आफ़्ताब का आइना
आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम
ये आधी रात ये काफ़िर अंधेरा
हर नफ़्स उतनी ही लौ देगा 'सिराज'
लहू में डूबी है तारीख़-ए-ख़िल्क़त-ए-इंसाँ
ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए
हर अश्क-ए-सुर्ख़ है दामान-ए-शब में आग का फूल
हाँ तुम को भूल जाने की कोशिश करेंगे हम
आप के पाँव के नीचे दिल है
आँसू हैं कफ़न-पोश सितारे हैं कफ़न-रंग
इस दिल में तो ख़िज़ाँ की हवा तक नहीं लगी