क़फ़स भी बिगड़ी हुई शक्ल है नशेमन की
ये घर जो फिर से सँवर जाए आशियाँ हो जाए
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(453) Peoples Rate This
सज्दा-ए-इश्क़ पे तन्क़ीद न कर ऐ वाइ'ज़
ये एक लड़ी के सब छिटके हुए मोती हैं
जलती रहना शम-ए-हयात
क़फ़स से दूर सही मौसम-ए-बहार तो है
काफ़िरी में भी जो चाहत होगी
आग और धुआँ और हवस और है इश्क़ और
दाम-बर-दोश फिरें चाहे वो गेसू बर-दोश
क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी
आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम
चमक शायद अभी गीती के ज़र्रों की नहीं देखी
अश्क-ए-हसरत में क्यूँ लहू है अभी