इश्क़ का बंदा भी हूँ काफ़िर भी हूँ मोमिन भी हूँ
आप का दिल जो गवाही दे वही कह लीजिए
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चमक शायद अभी गीती के ज़र्रों की नहीं देखी
आप के पाँव के नीचे दिल है
ये इंक़लाब भी ऐ दौर-ए-आसमाँ हो जाए
ज़रा देखो ये सरकश ज़र्रा-ए-ख़ाक
अच्छा क़िसास लेना फिर आह-ए-आतिशीं से
हैरान हैं अब जाएँ कहाँ ढूँडने तुम को
इक काफ़िर-ए-मुतलक़ है ज़ुल्मत की जवानी भी
ये ज़मीं ख़ुद हो जन्नतों का सुहाग
तुझे पा के तुझ से जुदा हो गए हम
ज़र्ब-उल-मसल हैं अब मिरी मुश्किल-पसंदियाँ
जलती रहना शम-ए-हयात
ख़बर रिहाई की मिल चुकी है चराग़ फूलों के जल रहे हैं