हैरान हैं अब जाएँ कहाँ ढूँडने तुम को
आईना-ए-इदराक में भी तुम नहीं रहते
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क़िस्मत से लड़ती हैं निगाहें
ये इंक़लाब भी ऐ दौर-ए-आसमाँ हो जाए
आँसू हैं कफ़न-पोश सितारे हैं कफ़न-रंग
ईमाँ की नुमाइश है सज्दे हैं कि अफ़्साने
रात भर शम्अ जलाता हूँ बुझाता हूँ 'सिराज'
हर लग़्ज़िश-ए-हयात पर इतरा रहा हूँ मैं
यूँ सुबुक-दोश हूँ जीने का भी इल्ज़ाम नहीं
निगाह-ए-यार यूँही और चंद पैमाने
जान सी शय की मुझे इश्क़ में कुछ क़द्र नहीं
इश्क़ का बंदा भी हूँ काफ़िर भी हूँ मोमिन भी हूँ
न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है