चंद तिनकों की सलीक़े से अगर तरतीब हो
बिजलियों को भी तवाफ़-ए-आशियाँ करना पड़े
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मुझे अब हवा-ए-चमन नहीं कि क़फ़स में गूना क़रार है
टकराऊँ क्यूँ ज़माने से क्या फ़ाएदा 'सिराज'
ये ज़मीं ख़ुद हो जन्नतों का सुहाग
ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए
आँखों पर अपनी रख कर साहिल की आस्तीं को
अजब सूरत से दिल घबरा रहा है
तुझे पा के तुझ से जुदा हो गए हम
न पी सको तो इधर आओ पोंछ दूँ आँसू
न मोहतसिब की ख़ुशामद न मय-कदे का तवाफ़
जान सी शय की मुझे इश्क़ में कुछ क़द्र नहीं
ज़र्ब-उल-मसल हैं अब मिरी मुश्किल-पसंदियाँ
हैरान हैं अब जाएँ कहाँ ढूँडने तुम को