बड़ों-बड़ों के क़दम डगमगाए जाते हैं
पड़ा है काम बदलते हुए ज़माने से
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
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आग और धुआँ और हवस और है इश्क़ और
ख़ुशा वो दौर कि जब मरकज़-ए-निगाह थे हम
आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम
ज़र्ब-उल-मसल हैं अब मिरी मुश्किल-पसंदियाँ
रात भर शम्अ जलाता हूँ बुझाता हूँ 'सिराज'
आँखों में आज आँसू फिर डबडबा रहे हैं
ये इंक़लाब भी ऐ दौर-ए-आसमाँ हो जाए
क़फ़स भी बिगड़ी हुई शक्ल है नशेमन की
लहू में डूबी है तारीख़-ए-ख़िल्क़त-ए-इंसाँ
चंद तिनकों की सलीक़े से अगर तरतीब हो
जान सी शय की मुझे इश्क़ में कुछ क़द्र नहीं
अजब सूरत से दिल घबरा रहा है