कुछ और माँगना मेरे मशरब में कुफ़्र है
ला अपना हाथ दे मिरे दस्त-ए-सवाल में
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चंद तिनकों की सलीक़े से अगर तरतीब हो
इस दिल में तो ख़िज़ाँ की हवा तक नहीं लगी
क़िस्मत से लड़ती हैं निगाहें
ये इंक़लाब भी ऐ दौर-ए-आसमाँ हो जाए
न मोहतसिब की ख़ुशामद न मय-कदे का तवाफ़
वो भीड़ है कि ढूँढना तेरा तो दरकिनार
ये एक लड़ी के सब छिटके हुए मोती हैं
ये आधी रात ये काफ़िर अंधेरा
नमाज़-ए-इश्क़ पढ़ी तो मगर ये होश किसे
हैरान हैं अब जाएँ कहाँ ढूँडने तुम को
सोता रहा होंटों पे तबस्सुम का सवेरा
जलती रहना शम-ए-हयात