वो नग़्मगी का ज़ाइक़ा उस की सदा में था

वो नग़्मगी का ज़ाइक़ा उस की सदा में था

फैला हुआ वो नूर सा सारी फ़ज़ा में था

चुप चाप बे-ज़बाँ कोई मेरी अना में था

वर्ना कहाँ ये हौसला मेरी बिना में था

वो मेरे साँस की धनक में झूलता था कौन

किस का था रंग-रूप जो हुस्न-ए-ख़ला में था

जो छू रहा था मेरे बदन ही को बार बार

तेरे ख़ुलूस का कोई झोंका हवा में था

जाँ से गुज़र के भी कभी शायद न ये खुले

जादू ये किस निगाह का मेरी निगह में था

कल रात बह रहा था जो बारिश के नाम से

मेरा ही एक अश्क-ए-तर सारी घटा में था

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In Hindi By Famous Poet Sohan Rahi. is written by Sohan Rahi. Complete Poem in Hindi by Sohan Rahi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.