अश्क Poetry (page 15)

सौदा-ए-सज्दा शाम-ओ-सहर मेरे सर में है

रंजूर अज़ीमाबादी

एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे

राना आमिर लियाक़त

फिर भीग चलीं आँखें चलने लगी पुर्वाई

राम कृष्ण मुज़्तर

गर्दिश-ए-जाम भी है रक़्स भी है साज़ भी है

राम कृष्ण मुज़्तर

दिल-ओ-नज़र में न पैदा हुई शकेबाई

राम कृष्ण मुज़्तर

क़फ़स पे बर्क़ गिरे और चमन को आग लगे

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

न मंज़िलें थीं न कुछ दिल में था न सर में था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दिलों में ख़ाक सी उड़ती है क्या न जाने क्या

राजेन्द्र मनचंदा बानी

आ जाना

राजेन्द्र नाथ रहबर

क्या ग़ज़ब है कि चार आँखों में

रजब अली बेग सुरूर

अभी से मत कहो दिल का ख़लल जावे तो बेहतर है

रजब अली बेग सुरूर

नख़्ल-ए-उमीद-ओ-आरज़ू बे-बर्ग-ओ-बार है

राज कुमार सूरी नदीम

शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम

रईस अमरोहवी

हब्स के आलम में महबस की फ़ज़ा भी कम नहीं

रईस अमरोहवी

बहुत रौशन हम अपना नय्यर-ए-तक़दीर देखेंगे

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

शाम-ए-ग़म बीमार के दिल पर वो बन आई कि बस

राही शहाबी

न शिकवे हैं न फ़रियादें न आहें हैं न नाले हैं

राही शहाबी

साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के

राहील फ़ारूक़

न मैं हाल-ए-दिल से ग़ाफ़िल न हूँ अश्क-बार अब तक

इरफ़ान अहमद मीर

न मैं हाल-ए-दिल से ग़ाफ़िल न हूँ अश्क-बार अब तक

इरफ़ान अहमद मीर

मौसमों की बातों तक गुफ़्तुगू रही अपनी

इक़बाल उमर

संग-दिल हूँ इस क़दर आँखें भिगो सकता नहीं

इक़बाल साजिद

काहिश-ए-ग़म ने जिगर ख़ून किया अंदर से

इक़बाल कौसर

यही नहीं कि निगाहों को अश्क-बार किया

इक़बाल कैफ़ी

यही नहीं कि निगाहों को अश्क-बार किया

इक़बाल कैफ़ी

कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए

इक़बाल अशहर

है नूर-ए-बसर मर्दुमक-ए-दीदा में पिन्हाँ यूँ जैसे कन्हैया

इंशा अल्लाह ख़ान

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