अश्क Poetry (page 13)

मेरे तसव्वुरात हैं तहरीरें इश्क़ की

साग़र सिद्दीक़ी

ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा

साग़र सिद्दीक़ी

अब जश्न-ए-अश्क ऐ शब-ए-हिज्राँ करेंगे हम

साग़र ख़य्यामी

किश्त-ए-दयार-ए-सुब्ह से तारे उगाऊँ मैं

सईद शरीक़

ख़ुद को जब ख़ुद से किसी रोज़ रिहाई दूँगी

सादिया सफ़दर सादी

जब भी तिरी क़ुर्बत के कुछ इम्काँ नज़र आए

सादिक़ नसीम

लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला

सदा अम्बालवी

अँधेरी रात के साँचे में ढाले जा चुके थे हम

सचिन शालिनी

गुज़ारता हूँ जो शब इश्क़-ए-बे-मआश के साथ

साबिर ज़फ़र

ख़ुमार-ए-शब में जो इक दूसरे पे गिरते हैं

साबिर ज़फ़र

जिधर हो ज़िंदगी मुश्किल उधर नहीं आते

साबिर ज़फ़र

अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता

साबिर ज़फ़र

ये सैल-ए-अश्क मुझे गुफ़्तुगू की ताब तो दे

सबिहा सबा, न्यूयार्क

कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला

सबा अकबराबादी

कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो

सबा अकबराबादी

है जो दरवेश वो सुल्ताँ है ये मा'लूम हुआ

सबा अकबराबादी

जो आ के रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क नहीं है पानी है

सबा अफ़ग़ानी

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काँटों से भी ज़ीनत होती है

सबा अफ़ग़ानी

बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में

साइल देहलवी

दश्त की प्यास बढ़ाने के लिए आए थे

सादुल्लाह शाह

दर्द को अश्क बनाने की ज़रूरत क्या थी

सादुल्लाह शाह

मुस्तक़िल अब बुझा बुझा सा है

एस ए मेहदी

बनते ही शहर का ये देखिए वीराँ होना

एस ए मेहदी

जब कि सारी काएनात उस की निगहबानी में है

रोहित सोनी ‘ताबिश’

कोई ख़्वाब था जो बिखर गया कोई दर्द था जो ठहर गया

रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान

ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले

रियाज़ ख़ैराबादी

ये सीधे जो अब ज़ुल्फ़ों वाले हुए हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता

रियाज़ ख़ैराबादी

पैमाने में वो ज़हर नहीं घोल रहे थे

रियाज़ ख़ैराबादी

न तारे अफ़्शाँ न कहकशाँ है नमूना हँसती हुई जबीं का

रियाज़ ख़ैराबादी

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