कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला
असीर-ए-ग़म कोई ज़िंदाँ से जैसे छूट कर निकला
Faiz Ahmad Faiz
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ये हमीं हैं कि तिरा दर्द छुपा कर दिल में
उस का वादा ता-क़यामत कम से कम
ऐसा भी कोई ग़म है जो तुम से नहीं पाया
चला-चल मोहलत-ए-आराम क्या है
काम आएगी मिज़ाज-ए-इश्क़ की आशुफ़्तगी
कब तक यक़ीन इश्क़ हमें ख़ुद न आएगा
बाल-ओ-पर की जुम्बिशों को काम में लाते रहो
तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं
ख़्वाहिशों ने दिल को तस्वीर-ए-तमन्ना कर दिया
आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए
कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो
अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक